कांग्रेस ने हाल ही में OBC समुदाय को साधने के लिए ‘AHINDA कार्ड’ का सहारा लिया है। ‘AHINDA’ का मतलब है अल्पसंख्यक (Minorities), पिछड़े वर्ग (Backward Classes), और दलित (Dalits)। यह शब्द कर्नाटक की राजनीति में काफी प्रचलित है और इसे पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने लोकप्रिय बनाया था। अब कांग्रेस इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की कोशिश कर रही है।
बेंगलुरु डिक्लेरेशन: कांग्रेस की नई रणनीति
कांग्रेस की OBC Advisory Council ने हाल ही में बेंगलुरु में एक बैठक आयोजित की, जिसमें ‘बेंगलुरु डिक्लेरेशन’ पास किया गया। इस डिक्लेरेशन में OBC समुदाय के लिए आरक्षण बढ़ाने, सामाजिक न्याय को प्राथमिकता देने और आर्थिक असमानता को खत्म करने जैसे मुद्दों पर जोर दिया गया है। यह कदम कांग्रेस की OBC राजनीति को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा प्रयास माना जा रहा है।
समाजवादी पार्टी का ‘PDA मॉडल’ बनाम कांग्रेस का ‘AHINDA कार्ड’
समाजवादी पार्टी (SP) ने हाल ही में ‘PDA’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) मॉडल को बढ़ावा दिया है। यह मॉडल उत्तर प्रदेश की राजनीति में SP की पकड़ को मजबूत करने के लिए तैयार किया गया है। कांग्रेस का ‘AHINDA कार्ड’ इसी मॉडल का जवाब माना जा रहा है। दोनों पार्टियां OBC और अन्य वंचित वर्गों को साधने की कोशिश कर रही हैं, जिससे 2024 के लोकसभा चुनाव में बड़ा असर पड़ सकता है।
OBC राजनीति का महत्व
भारत में OBC समुदाय की आबादी लगभग 40% है, जो किसी भी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकती है। यही कारण है कि कांग्रेस और अन्य पार्टियां OBC वोट बैंक को साधने के लिए नई-नई रणनीतियां अपना रही हैं। ‘AHINDA कार्ड’ और ‘PDA मॉडल’ इसी राजनीति का हिस्सा हैं।
कांग्रेस की चुनौतियां
हालांकि कांग्रेस का ‘AHINDA कार्ड’ एक मजबूत रणनीति है, लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं होगा। OBC समुदाय के भीतर भी कई उप-वर्ग हैं, जिनकी अपनी-अपनी मांगें और प्राथमिकताएं हैं। इसके अलावा, भाजपा (BJP) ने भी OBC समुदाय को साधने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जिससे कांग्रेस के लिए चुनौती और बढ़ जाती है।