Tariffs, Dumping और Dharma: India Economic Model क्यों जरूरी
वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता, आपूर्ति श्रृंखला के बदलाव और सस्ती आयातित वस्तुओं के dumping ने भारत जैसे बड़े बाजार के सामने नई चुनौतियाँ रख दी हैं। इस परिप्रेक्ष्य में भारत को ऐसा India Economic Model गढ़ने की ज़रूरत महसूस हो रही है जो tariffs, anti-dumping duty, गुणवत्ता मानकों और नैतिकता को जोड़कर घरेलू उद्योग, उपभोक्ताओं और दीर्घकालिक विकास—तीनों के हितों को साथ ले चले।
dumping का आशय तब होता है जब कोई विदेशी उत्पाद घरेलू बाजार में सामान्य लागत से कम कीमत पर उतारा जाता है, जिससे घरेलू इकाइयाँ असंतुलित प्रतिस्पर्धा में आती हैं। ऐसे मामलों में WTO rules के भीतर रहते हुए anti-dumping duty या safeguard measures लगाना वैध उपचार माना जाता है। भारत में ऐसी जाँच और सिफारिशों के लिए सक्षम संस्थागत ढांचा मौजूद है, और यह घरेलू विनिर्माण तथा MSME क्षेत्र की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
भारत की tariff policy का उद्देश्य केवल राजस्व नहीं, बल्कि industrial policy के साथ तालमेल में तकनीक, रोजगार और वैल्यू एडिशन को बढ़ावा देना भी होना चाहिए। जहां आवश्यक हो, उभरते क्षेत्रों को समयबद्ध और पारदर्शी protection दी जा सकती है, वहीं प्रतिस्पर्धा, नवाचार और गुणवत्ता सुधार पर निरंतर जोर जरूरी है। नीति का predictability और review cycle निवेश के विश्वास को मजबूत करते हैं।
India Economic Model: Dharma आधारित संतुलन (Balance)
भारतीय चिंतन का एक प्रमुख आधार dharma है—अर्थात नीति ऐसा संतुलन साधे जिसमें उत्पादक, उपभोक्ता और समाज का दीर्घकालिक हित सुरक्षित रहे। यही भावना एक व्यावहारिक India Economic Model का मूल बन सकती है। इसका अर्थ है कि tariffs और non-tariff measures (जैसे Quality Control Orders, मानकीकरण, traceability) का विवेकपूर्ण प्रयोग हो ताकि गुणवत्ता सुधरे, रोजगार सृजित हो और अनुचित dumping रोका जा सके, परंतु प्रतिस्पर्धा जीवित रहे और आवश्यक वस्तुओं की कीमतें अनियंत्रित न हों।
नीति निर्माण में consumer welfare और producer viability दोनों को साथ देखना होगा। बहुत ऊँचे tariffs से लागत बढ़ सकती है, जबकि बहुत कम होने पर अनुचित आयात बढ़ते हैं। अतः क्षेत्रवार data-driven विश्लेषण, sunset clause, और लक्ष्य-आधारित प्रोत्साहन बेहतर परिणाम देते हैं।
भारत ने Make in India, PLI scheme, Gati Shakti जैसी पहलों से विनिर्माण, लॉजिस्टिक्स और निवेश को गति देने का प्रयास किया है। आगे बढ़ते हुए मानकीकरण, परीक्षण प्रयोगशालाएँ, डिज़ाइन क्षमता, और R&D पर बल देना उतना ही आवश्यक है। MSME के लिए सस्ती ऋण पहुँच, क्लस्टर-आधारित सपोर्ट और global value chains से जुड़ाव, भारत के निर्माण भागीदारी को और व्यापक बना सकते हैं।
Policy Roadmap (रोडमैप): Trade, Quality और Jobs
FTAs में भागीदारी चयनात्मक और घरेलू क्षमताओं के अनुरूप होनी चाहिए। rules of origin का कड़ाई से पालन कराकर tariff circumvention रोकी जा सकती है। उद्योग-विशेष के लिए तार्किक tariffs, anti-dumping duty और गुणवत्ता मानकों का मिश्रण नीति-कला का केंद्र बने।
- Strategic tariffs: नवोदित क्षेत्रों में समयबद्ध सुरक्षा, पर स्पष्ट sunset और प्रदर्शन मानक।
- Trade remedies: निष्पक्ष जाँच, पारदर्शी पद्धति और तेज़ निर्णय से dumping पर रोक।
- Quality push: QCOs, मानकीकरण और परीक्षण ढाँचा जिससे निम्न-स्तरीय आयात घटें और घरेलू गुणवत्ता उभरे।
- Logistics & infra: मल्टी-मोडल कनेक्टिविटी से लागत में सुधार और export competitiveness को बढ़ावा।
- Innovation: R&D, डिज़ाइन, और तकनीक उन्नयन पर प्रोत्साहन जिससे उत्पादकता बढ़े।
- MSME enablement: क्रेडिट, स्किल और मार्केट-लिंक से छोटे उद्यमों को बड़े ऑर्डर व exports तक पहुँच।
- Predictable policy: tariff कैलिब्रेशन का पूर्व-संकेत, वार्षिक/द्विवार्षिक समीक्षा और डेटा-आधारित सुधार।
- Consumer focus: आवश्यक क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा और सप्लाई स्थिर रहे ताकि कीमतें संतुलित रहें।
भारत का लक्ष्य केवल आयात प्रतिस्थापन नहीं, बल्कि उच्च गुणवत्ता वाले exports के माध्यम से वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी बढ़ाना भी होना चाहिए। इसके लिए टिकाऊ लागत संरचना, भरोसेमंद सप्लाई, कुशल श्रमबल और विश्व-स्तरीय मानक जरूरी हैं। Dharma प्रेरित दृष्टिकोण इस परिवर्तन में नैतिक दिशा देता है—लघु और विशाल, दोनों हितधारकों को स्थान देकर दीर्घकालिक समृद्धि की राह बनती है।