यूरोपीय कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स (European Court of Human Rights) ने हाल ही में एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। रिपोर्ट के अनुसार, रूस की सेना ने यूक्रेन में युद्ध के दौरान बलात्कार और डर (Rape and Fear) को एक रणनीति के रूप में इस्तेमाल किया। यह खुलासा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों के उल्लंघन की गंभीरता को दर्शाता है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि रूस की सेना ने यूक्रेन के नागरिकों को डराने और उनके मनोबल को तोड़ने के लिए इन अमानवीय तरीकों का सहारा लिया। यह रणनीति न केवल युद्ध के नियमों का उल्लंघन करती है, बल्कि यह मानवता के खिलाफ अपराध (Crimes Against Humanity) के दायरे में भी आती है।

युद्ध में बलात्कार और डर का इस्तेमाल क्यों?

युद्ध के दौरान बलात्कार और डर का इस्तेमाल एक मनोवैज्ञानिक हथियार (Psychological Weapon) के रूप में किया जाता है। इसका उद्देश्य दुश्मन के नागरिकों को मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर करना होता है। यूरोपीय कोर्ट की रिपोर्ट के अनुसार, रूस की सेना ने यूक्रेन के कई इलाकों में इस रणनीति का इस्तेमाल किया।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की रणनीतियां युद्ध के दौरान दुश्मन के मनोबल को तोड़ने के लिए अपनाई जाती हैं। हालांकि, यह अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन है।

यूरोपीय कोर्ट का फैसला

यूरोपीय कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स ने इस मामले में रूस की कड़ी आलोचना की है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की रणनीतियां न केवल अमानवीय हैं, बल्कि यह युद्ध अपराध (War Crimes) के तहत आती हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में जिम्मेदार लोगों को सजा मिलनी चाहिए।

रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन के कई नागरिकों ने इस मामले में गवाही दी है। उन्होंने बताया कि कैसे रूस की सेना ने उनके इलाकों में डर और आतंक का माहौल बनाया।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

इस खुलासे के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने रूस की कड़ी आलोचना की है। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने इस मामले की जांच की मांग की है।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के मामलों में अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना जरूरी है ताकि जिम्मेदार लोगों को सजा मिल सके।

यह मामला न केवल रूस और यूक्रेन के बीच के संघर्ष को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि युद्ध के दौरान मानवाधिकारों का कितना बड़ा उल्लंघन हो सकता है।

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