मेरठ के जिला न्यायालय में मंगलवार को उस वक़्त सनसनी फैल गई, जब सौरभ हत्याकांड के आरोपी साहिल शुक्ला पर वकीलों ने हमला कर दिया . कोर्ट परिसर में हुई इस घटना ने एक बार फिर इंसाफ और कानून के दायरे पर बहस छेड़ दी है.
क्या है पूरा मामला?
सौरभ राजपूत, जो मर्चेंट नेवी में कार्यरत थे, की मार्च 2025 में बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. इस हत्याकांड में उनकी पत्नी मुस्कान रस्तोगी और मुस्कान के प्रेमी साहिल शुक्ला को मुख्य आरोपी बनाया गया है आरोप है कि दोनों ने मिलकर सौरभ को नशीला पदार्थ दिया, फिर चाकू से गोदकर उनकी हत्या कर दी. इसके बाद शव को 15 टुकड़ों में काटकर सीमेंट से भरे ड्रम में छिपा दिया इस घटना ने पूरे इलाके को हिलाकर रख दिया था.
कोर्ट में क्यों हुआ हमला?
मंगलवार को साहिल को कोर्ट में पेशी के लिए लाया गया था. सौरभ की हत्या से गुस्साए वकीलों ने कोर्ट परिसर में ही साहिल पर हमला कर दिया. वकीलों ने साहिल को लात-घूंसों से पीटा, जिससे कोर्ट परिसर में अफरा-तफरी मच गई पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए साहिल को वकीलों के चंगुल से छुड़ाया और उसे सुरक्षित कोर्ट रूम में पहुंचाया.
कानून हाथ में लेना कितना सही?
इस घटना ने एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या इंसाफ के लिए कानून को अपने हाथ में लेना सही है? वकीलों का गुस्सा जायज़ हो सकता है, लेकिन कानून को अपने हाथ में लेने से न्याय व्यवस्था पर सवाल उठते हैं. क्या भीड़तंत्र से इंसाफ हो सकता है? क्या ये सही है कि आरोपी को कोर्ट में पेशी के दौरान इस तरह पीटा जाए?
पुलिस की भूमिका पर सवाल
कोर्ट परिसर में हुई इस घटना ने पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं. आरोपी को कोर्ट में पेश करने के दौरान सुरक्षा में चूक कैसे हुई? क्या पुलिस वकीलों के गुस्से का अंदाज़ा नहीं लगा पाई? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब मिलना ज़रूरी है.
आगे क्या होगा?
इस घटना के बाद कोर्ट प्रशासन और पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था को और सख्त करने का फैसला किया है. लेकिन क्या सिर्फ सुरक्षा बढ़ाने से ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है? क्या समाज में बढ़ रही हिंसा और गुस्से को कम करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाने चाहिए?